स्मृति साहित्य

स्मृति साहित्य हिन्दू धर्मग्रंथों का वह वर्ग है जो मानव-निर्मित (पौरुषेय) माने जाते हैं। इन ग्रंथों को "श्रुति" के बाद मान्यता प्राप्त है और इन्हें समय, समाज और परिस्थिति के अनुसार व्यवस्थित रूप से लिखा गया धर्मशास्त्र माना गया है।

"स्मृति" का शाब्दिक अर्थ है – "जो याद रखा गया", अर्थात वे ग्रंथ जो ऋषियों द्वारा श्रुति (वेदों) के आधार पर स्मृति के रूप में रचे गए।

 स्मृति साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ:

  • समाज में आचरण, नीति, धर्म और व्यवस्था को स्थापित करने हेतु रचित।

  • इनमें नैतिकता, धर्म, राजनीति, समाजशास्त्र, आर्थिक नीति आदि विषयों पर स्पष्ट निर्देश हैं।

  • श्रुति के सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप में समझने का माध्यम।

 स्मृति साहित्य के मुख्य अंग:

  1. धर्मशास्त्र / स्मृतियाँ

    • प्रमुख ऋषियों द्वारा रचित नियम-संहिताएँ।

    • उदाहरण:

      • मनुस्मृति

      • याज्ञवल्क्य स्मृति

      • नारद स्मृति

      • पराशर स्मृति

      • विष्णु स्मृति

  2. इतिहास ग्रंथ

    • जो स्मृति परंपरा में आते हैं और जीवन के आदर्श प्रस्तुत करते हैं:

      • रामायण (वाल्मीकि रचित)

      • महाभारत (वेदव्यास रचित)

      • इन ग्रंथों को "इतिहास" कहा जाता है, जो स्मृति साहित्य का हिस्सा हैं।

  3. पुराण

    • ईश्वर, सृष्टि, धर्म, कर्म, जन्म-मरण, अवतार आदि का विवेचन।

    • 18 मुख्य पुराण और उपपुराण

    • प्रमुख पुराण: श्रीमद्भागवत, शिव पुराण, विष्णु पुराण, देवी पुराण, आदि।

 स्मृति का महत्व:

  • समाज में न्याय, आदर्श जीवन पद्धति और धार्मिक अनुशासन स्थापित करना।

  • श्रुति के अमूर्त सिद्धांतों को व्यवहारिक स्तर पर उतारना।

  • स्मृति साहित्य समयानुकूल परिवर्तन की अनुमति देता है – "युगानुसार धर्म परिवर्तनं स्यात्"

श्रुति और स्मृति में अंतर:

श्रुति स्मृति
अपौरुषेय (ईश्वर प्रेरित) पौरुषेय (ऋषियों द्वारा रचित)
वेद, उपनिषद आदि मनुस्मृति, रामायण, पुराण आदि
स्थायी और सार्वकालिक समयानुसार परिवर्तनशील

"श्रुति सिद्धांत है, स्मृति उसका व्यवहार है।"